गर्व करने वाली है पूरी कहानी
‘सेंगोल’ शब्द तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नीतिपरायणता’
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को जब नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित करेंगे, तब इसके साथ ही एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी और नए संसद भवन में सेंगोल को स्थापित किया जाएगा। आजादी के समय के गौरव का प्रतीक यानी सेंगोल कैसे एक तरह से अंधकार में विलीन हुआ और कैसे पीएम नरेंद्र मोदी ने इसका वैभव फिर से लौटाया? ये कहानी गर्व करने वाली तो है ही, हैरान और परेशान करने वाली भी है।
देश को आजादी मिल गई थी। अब बस औपचारिकता पूरी होनी थी। उसी बीच एक दिन आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री पद के लिए नामांकित हो चुके जवाहर लाल नेहरू से एक अजीब सा सवाल किया। उन्होंने कहा मिस्टर नेहरू, सत्ता हस्तांतरण के समय आप क्या चाहेंगे? कोई खास प्रतीक या रिचुअल का पालन करेंगे? अगर कोई हो तो हमें बताइए। इसके बाद नेहरू बुरी तरह से असमंजस में फंस गए। उनको कुछ समझ नहीं आया। विद्वान नेहरू को ख्वाब में भी ये बातें नहीं आईं होंगी। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू ने माउंटबेटन को कहा कि मैं आपको बताता हूं। इसी उधेड़बुन में नेहरू ने उस समय के वरिष्ठ नेताओं से जानकारी ली कि क्या करना चाहिए। तब नेहरू ने उसकी जिम्मेदारी सौंपी सी राजगोपालचारी को, जिन्हें राजाजी भी कहा जाता है। राजाजी ने कई सारे धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों को देखा, पढ़ा और जाना। इसी बीच उनको चोल साम्राज्य के एक प्रतीक के बारे में जानकारी हुई। भारतीय स्वर्णिम इतिहास में चोल साम्राज्य का अपना ही नाम रहा है। उस साम्राज्य में एक राजा से दूसरे राजा के हाथ मे सत्ता जाती थी तो राजपुरोहित एक राजदंड देकर उसका संपादन करते थे। एक तमिल पांडुलिपि में वो प्रतीक चिन्ह यानी राजदंड या धर्मदंड का चित्रण उनको मिल गया। उसको लेकर वे जवाहर लाल नेहरू के पास गए। नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद और अन्य नेताओं से विमर्श कर उस पर हामी भर दी।
चांदी के बने सेंगोल पर सोने की परत
अब चुनौती थी उस राजदंड को बनाने की। राजाजी ने तंजोर के धार्मिक मठ से संपर्क किया। उनके सुझाव पर चेन्नई के ज्वेलर्स को इस सेंगोल को बनाने के लिए ऑर्डर दिया गया। 5 फुट का ये प्रतीक चांदी का बना, जिसपर सोने की परत थी। इस प्रतीक चिन्ह के शीर्ष पर नंदी बने हुए थे, जिसे न्याय के रूप में दर्शाया गया। जिस ज्वेलर्स ने सेंगोेल बनाया था, उस ज्वेलर्स का मालिक भी अभी जिंदा है। Vmmudi Bangaru Chetti Jewellers के 96 वर्षीय Vummidi Ethirajulu 28 मई के कार्यक्रम में मौजूद भी रहेंगे। जब सेंगोल तैयार हो गया तो उसे मठ के अधिनामों ने माउंटबेटन को दिया। उसे माउंटबेटन ने पुरोहितों को लौटा दिया। फिर इस प्रतीक को गंगा जल से शुद्धिकरण हुआ और तब जाकर पंडित नेहरू ने इसे धारण किया। और इस तरह गुलाम भारत इस पवित्र प्रतीक चिन्ह सेन्गोल के साथ आजाद भारत बना। अब वही सेंगोल 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद के नए भवन में स्थापित किया जाएगा।
जानकारी के अनुसार, सेंगोल आजादी के समय सत्ता हस्तांतरण का पवित्र प्रतीक के रूप में धारण किया गया था, लेकिन ये दिल्ली से इलाहाबाद पहुंच गया। इसे 1960 में इलाहाबाद संग्रहालय में भेज दिया गया और इस तरह सेंगोल भूले बिसरे गीत की तरह भुला दिया गया। न किसी को याद रहा और न किसी ने इस पवित्र प्रतीक के बारे में याद दिलाई। ये आज भी किसी के संज्ञान में नही आता, अगर संसद का नया भवन नहीं बनता। लगभग डेढ़ साल पहले किसी विशेषज्ञ/अधिकारी ने सेंगोल का जिक्र पीएम मोदी से किया। पीएम मोदी तो है ही नई सोच, नई खोज को तलाशने या तराशने वाले। उन्होंने इसकी खोज और उसकी जांच करने को कहा। तब शुरू हुई 14 अगस्त 1947 के सेंगोल को ढूंढने की खोज। न कोई लिखित डॉक्यूमेंट और न ही कोई चश्मदीद। इसकी खोज टेढ़ी खीर साबित होने लगा। पुराने राजे रजवाड़ों के तहखानों और संग्रहालयों कि तलाशी ली गई। सभी संग्रहालयों में तलाशा गया, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। फिर खोजकर्ताओं को प्रयागराज संग्रहालय के एक कर्मचारी ने जैसे नया जीवन तब दे दिया, जब उसने कहा कि दंड जैसी कोई वस्तु को संग्रहालय के कोने में मैंने देखा है। खोजकर्ता तुरंत वहां गए और करीब तीन महीने पहले इसकी जानकारी पीएम मोदी को दी गई। उन्होंने इसकी पूरी तरह से जांच परख करने को कहा।
सेंगोल का बनाने वाले ज्वेलर ने किया ठीक
1947 से 1960 तक के तमिल अखबारों में इस प्रतीक के बारे में छपी आर्टिकल को खंगाला गया। विदेशी अखबारों को खंगाला गया। 1975 में शंकराचार्य ने अपनी जीवनी लिखवाई थी, उसमे इसके जिक्र का अध्य्यन किया गया। फिर ढूंढते-ढूंढते चेन्नई के उस ज्वेलर के पास पहुंचा गया, जिसने 1947 में इसे बनाया था और वो 96 साल के हैं। उन्होंने अपने हाथों से बनाई इस अद्वितीय कलाकृति को पहचान लिया, जो प्रयागराज के संग्रहालय से लाई गई थी। और इस तरह से 1947 के पवित्र प्रतीक को नई जीवनदान मिली। इसके बाद इस सेंगोल को उसी ज्वेलर को ठीक करने के लिए दिया गया, जिन्होंने इसे बनाया था। जब 28 मई को पीएम नरेंद्र मोदी लोकसभा अध्यक्ष के आसन के ऊपर इसे स्थापित करेंगे तो गौरवशाली सेंगोल का पुराना वैभव ही दिखाई देगा। इसमें चांदी के सेंगोल पर सोने की परत है। ऊपर नंदी विराजमान हैं और यह पांच फीट लंबा है। ‘सेंगोल’ शब्द तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नीतिपरायणता’।