ASN. विजय प्रेमदास गजभिये विदर्भ कोंकण ग्रामीण बैंक (प्रायोजीत बैंक बैंक ऑफ इंडिया) के अकोला एवं भंडारा क्षेत्र के विभित्र शाखा में शाखा प्रबंधक / अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। अंत में वे आपकी ग्रामीण बैंक के मेहकर शाखा में 30 जून 2020 को सेवानिवृत्त हुए। साथ में वे आपकी / ग्रामीण बैंक के व्दारा एवं भारत सरकार व्दारा मान्यता प्राप्त वेलफेवर असोशिएशन के प्रमुख पदाधिकारी भी थे तथा सामाजिक कार्यकर्ता भी है और अनुसूचित जाति में है और उन्होने बैंक के विरोध 13 जुलाई-2009 में 16 जुलाई-2009 तक विभिन्न मांग को लेकर आमरण अनशन भी किया था. उन मांगों को मानने का लिखित आश्वामन पत्र बैंक ने दिया था लेकिन उसपर अमल नहीं किया. अधिकारी को उनके किये गये बैंक पॅरामीटर मानदंड पर निष्तापूर्ण एवं अतुलनीय कार्य को सराहते हुए बैंक व्दारा सन्मान से नवाजा गया है। बैंक व्दारा उनके कार्य के संबंध में अन्य कोई भी शिकायत नहीं की गयी। बैंक तथा कंपनी के कारण मन-2014 के बीमा क्लेम त्रुटि के लिए 01/01/2019 में तथा 22/07/2019 में शिक्षा उन्हें पहले 14.56 लाख बसूलने कि शिक्षा बगैर जांच, बगैर वैयक्तिक मुलाकात एवं धमकी के साथ और उसी त्रुटि के लिए बाद में बैंक के दुसरे अधिकारी व्दारा 05/10/2021 को 7.00 लाख (रु.7.56 लाख की कमी) नियमबाहय तरिके से वसूली आदेश दिया। जिस ग्रामीण बैंक के अध्यक्ष अपील अधिकारी थी. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (याचार निवारण) अधिनियम-1989 (संशोधन-2016) अर्ज दि. 26/06/2020 के तहत जांच चालू है तथा मा. दिप्ता अदालत, बुनहाना व्दारा अडीम जमानत दि. 29/08/2020 को रदद की हो उनके अपील आदेश दि. 05/02/2022 (जो मैरकानूनी है) व्दारा 7.00 लाख निक्षा की पुष्टी कर श्री. गजभिये की सेवानिवृत्ती लाभ से वचित रखना, टी.ए. बील तथा मेडीकल क्लेम न देना, देरी से सेवानिवृत्ती लाभ देना, पेंशन तथा निवृत्ती नाम से वंचित रखने की धमकी देना, अतिरिक्त व्याज बसुलना, कोर्ट एवं पुलिस थाना में जाने के लिए मजबूर करना तथा कोर्ट में जाने की धमकी देना और खामकर निवृती एक महिना पहले दि.30/05/2020 को रू. 10 करोड दायित्व की चार्जशीट देना जाँच एवं अंतिम शिक्षा निर्णय प्रलंबित रखना, उनको धरना और अनशन के लिए मजबूर करना, उन पर आत्महत्या तथा हार्ट अटैक की स्थिती लाना, उप-विभागीय पुलिस अधिकारी, मेहकर, जिला- बुलडाना व्दारा अपूर्ण और अवैध जांच रिपोर्ट देरी से तयार करना, रिपोर्ट याचिकाकर्ता को न देता एवं 27 प्रतिवादी में में मिर्फ 25 का बयान लेना और बयान खो जाना / नष्ट करना जातिगत भेदभाव के श्रेणी में आता है.