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Thursday, September 11, 2025

सुप्रीम कोर्ट से शिंदे सरकार को राहत !

कोर्ट ने कहा, उद्धव को कराना चाहिए था फ्लोर टेस्ट

पहले इस्तीफा देकर की गलती

नई दिल्ली। महाराष्ट्र के सियासी संग्राम पर लंबे इंतजार के बाद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस  पूरे घटनाक्रम पर राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने कानून के तहत काम नहीं किया। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट का सामना करते और इस्तीफा नहीं देते तो आज स्थिति कुछ और ही होती। कोर्ट ने स्पीकर की भूमिका को लेकर भी टिप्पणी की। कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने इस पूरे मामले को सही से नहीं लिया। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि चूंकि उद्धव ठाकरे ने बहुमत परीक्षण का सामना किए बिना ही इस्तीफा दे दिया ऐसे में पुरानी स्थिति बहाल नहीं हो सकती।    
उद्धव गुट ने बागी हुए शिंदे समेत 15 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की थी। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया। हालांकि, जब तक बेंच का फैसला नहीं आता है तब तक विधानसभा अध्यक्ष को फैसला लेने के लिए कहा। हालांकि, ये तय नहीं है कि वह कब तक फैसला लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने चीफ व्हिप को लेकर भी बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि विधायक चीफ व्हिप तय नहीं कर सकते। ये पार्टी का फैसला होगा। कोर्ट की ये टिप्पणी शिंदे गुट के लिए बड़ा झटका मानी जा रही है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट का मामला सात जजों की बड़ी बेंच को सौंप दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आगे की सुनवाई सात जजों की बेंच करेगी।  

 क्या है मामला

2019 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव हुआ था। 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। देवेंद्र फडणवीस की अगुआई में पार्टी ने 105 सीटों पर जीत हासिल की। उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 42 सीटें मिलीं थीं।  बाकी अन्य पर छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर शिवसेना और भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर ठन गई। बात बढ़ने पर शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। बाद में शिवसेना ने कांग्रेस, एनसीपी के साथ मिलकर सरकार का गठन किया। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने।  

सरकार गठन के ढाई साल बाद हुई बगावत
सरकार गठन के ढाई साल बाद 20 जून 2022 को शिवसेना में बगावत हो गई।  एमएलसी चुनाव में शिवसेना के कई विधायकों ने भाजपा के उम्मीदवार को वोट किया। एक दिन बाद यानी 21 जून को ही उद्धव ठाकरे से नाखुश चल रहे विधायकों सूरत चले गए। इन विधायकों का नेतृत्व कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे कर रहे थे। यहां से ये सभी गुवाहाटी पहुंचे। इन विधायकों को मनाने के लिए 22 जून को शिवसेना प्रमुख के कहने पर तीन नेताओं का प्रतिनिधिमंडल बागी विधायकों से मिलने पहुंचा। हालांकि कुछ बात नहीं बनी।  इसके बाद करीब छह दिन बाद शिंदे गुट को मनाने के लिए उद्धव जुटे रहे, लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। इस बीच, उद्धव ठाकरे गुट की शिकायत पर डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दे दिया। इसके खिलाफ शिंदे गुट सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर की कार्रवाई पर 12 जुलाई तक रोक लगा दी। उधर, भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल से मिलकर फ्लोर टेस्ट की मांग कर दी। राज्यपाल ने भी इसके लिए आदेश जारी कर दिया। हालांकि, इसके पहले ही उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद भाजपा के समर्थन से 30 जून 2022 को एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी सीएम का पद संभाला।  चार जुलाई को महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हुआ। इसमें एकनाथ शिंदे ने बहुमत साबित किया। शिंदे को सरकार बचाने के लिए 144 विधायकों का समर्थन चाहिए था। फ्लोर टेस्ट के दौरान 164 विधायकों ने शिंदे सरकार के पक्ष में वोट किया। विपक्ष में 99 वोट पड़े और 22 विधायक गैर हाजिर रहे। इसके बाद उद्धव गुट ने चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट का रूख किया। चुनाव आयोग ने इसी साल फरवरी में अपना फैसला सुनाया। आयोग ने शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न दोनों ही एकनाथ शिंदे गुट को दे दिया। आयोग ने कहा कि शिंदे गुट ही असली शिवसेना है। चुनाव आयोग ने झटका लगने के बाद उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी तेज कर दी। 17 फरवरी को पीठ ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट की याचिकाओं पर सुनवाई की। 21 फरवरी से कोर्ट ने लगातार नौ दिन यह केस सुना था। 16 मार्च को सभी पक्षों की दलीलें पूरी होने पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में कोर्ट ने उद्धव और शिंदे गुट के साथ-साथ केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल का पक्ष भी सुना। आज इसी मामले में कोर्ट का अहम फैसला आया। 

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