
TEAM ASN : नेपाल में सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के विरोध में सोमवार को युवाओं द्वारा काठमांडू में किए गए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई । इस दौरान प्रदर्शनकारी संसद में घुस गए और जमकर बवाल किया। पुलिस ने यह जानकारी दी। राजधानी के कुछ हिस्सों में स्थिति तनावपूर्ण होने के कारण अधिकारियों ने मजबूर होकर एक दिन के लिए कर्फ्यू लगा दिया और देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए। स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई, लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। राजधानी काठमांडू में सुबह-सुबह स्कूल के छात्रों समेत हजारों युवाओं ने मैतीघर और बानेश्वोर इलाकों में मार्च निकाला। प्रदर्शनकारी छात्रों ने सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए फेसबुक, व्हाट्सएप और एक्स सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का आरोप लगाया। इस दौरान प्रदर्शन हिंसक हो गया, जब प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के पास पुलिस के अवरोधकों को तोड़ दिया। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आनन-फानन में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने लाठी चार्ज किया, आंसू गैस के गोले दागे और रबर की गोलियां चलाईं। काठमांडू जिला प्रशासन ने संसद भवन के आसपास के क्षेत्रों में अशांति को रोकने के लिए अपराह्न 12:30 बजे से रात 10:00 बजे तक निषेधाज्ञा लागू की। मुख्य जिला अधिकारी छवि लाल रिजाल ने एक नोटिस में कहा, ‘‘ प्रतिबंधित क्षेत्र में लोगों के आवागमन, प्रदर्शन, बैठक, सभा या धरना-प्रदर्शन की अनुमति नहीं होगी।”

नेपाल में हिंसा कई शहरों में फैलती जा रही है. सरकार के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर हैं. अब तक 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, मगर युवाओं का गुस्सा थम नहीं है. रात में भी सड़कें युवाओं से खचाखच भरी हैं. काठमांडू, पोखरा, झापा, बुटवल, चितवर, नेपालंगज हो या विराटनगर… एक ओर सेना और पुलिस के जवान बंदूक ताने खड़े हैं तो दूसरी ओर हजारों की संख्या में युवा लाठी डंडों के साथ डटे हुए हैं. उनकी बस एक ही डिमांड है, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस्तीफा दें. इन घटनाओं के बीच नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा कि जान-माल की हानि के लिए उन्हें नैतिक जिम्मेदारी महसूस होती है और इस कारण उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया. गृहमंत्री के इस्तीफे के बाद भी युवाओं का गुस्सा नहीं थम रहा है. पुलिस को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं, इसके बावजूद वे हटने को तैयार नहीं. पुलिस फायरिंग करती है, आंसू गैस का इस्तेमाल करती है, लाठियों से पीटती है, इसके बावजूद लोग सड़कों पर फिर जमा हो जाते हैं. उधर, विपक्षी दल भी एकजुट होने लगे हैं. केपी शर्मा ओली को पद से हटाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं. विपक्ष का कहना है कि केपी शर्मा ओली देश को आग में झोंक रहे हैं. नेपाल के बुद्धिजीवी, लेखक, डॉक्टर, कलाकार और पूर्व अफसर चिंतित दिख रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार और राजनीतिक दलों को युवाओं की नाराजगी को हल्के में नहीं लेना चाहिए. ये विरोध सिर्फ अचानक नहीं हुआ, बल्कि वर्षों की निराशा और गुस्से का नतीजा है. भ्रष्टाचार, खराब प्रशासन, सत्ता का दुरुपयोग और लगातार बढ़ती घमंड की वजह से युवा अब सड़कों पर उतर रहे हैं. काठमांडू पोस्ट से बात करते हुए डॉ. अरुण सायमी ने कहा, नेता सोचते हैं कि संसद में बहुमत होने पर वे कुछ भी कर सकते हैं. लेकिन आज के युवा किसी के गुलाम नहीं हैं. उनका सुझाव है कि सरकार तुरंत सोशल मीडिया पर लगी पाबंदी हटाए और युवाओं की आवाज को सुने. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को इस हिंसा और युवा नाराजगी को गंभीरता से लेना होगा. यह सिर्फ कानून और व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि लोकतंत्र और युवाओं के हक का भी सवाल है. युवाओं की मांगें साफ हैं कि भ्रष्टाचार कम करें, प्रशासन में पारदर्शिता लाएं और सोशल मीडिया जैसी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखें. अगर सरकार ने इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया, तो विरोध और बढ़ सकता है. युवाओं का कहना है कि वे किसी भी अत्याचार या पाबंदी को नहीं मानेंगे.