पटना. बिहार की लोकप्रिय मिठाई बालूशाही, तिलकुट और खुरमा को जल्द ही जीआई टैग मिलने की संभावना है. इसके लिए प्रारंभिक जांच के बाद आवेदन स्वीकार कर लिया गया है. इसके अलावा हाजीपुर के प्रसिद्ध ‘चीनिया’ केला, नालंदा की मशहूर ‘बावन बूटी’ साड़ी और गया की ‘पत्थरकट्टी’ पत्थर कला को भी जीआई टैग देने की मांग मंजूर कर ली गई है. नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार ने इसकी पुष्टि की है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार भोजपुर के उदवंतनगर का खुरमा, गया का तिलकुट, सीतामढ़ी की बालूशाही, हाजीपुर का प्रसिद्ध चीनिया केला, नालंदा की मशहूर बावन बूटी कला और गया की पत्थरकट्टी कला को जीआईटैग देने की मांग मंजूर हो गई है. नाबार्ड-बिहार के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार के अनुसार इन उत्पादों के लिए जीआई टैग की मांग करने वाले आवेदनों को जीआई रजिस्ट्री ने महत्वपूर्ण जांच एवं निरीक्षण के बाद स्वीकार कर लिया है. भोजपुर का ‘खुरमा’ और गुड़-तिल से बनाया जाना वाला गया का तिलकुट न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी बेहद काफी पसंद किया जाता है. वहीं, सीतामढ़ी के रुन्नीसैदपुर की मिठाई बालूशाही की भी देशभर में काफी डिमांड है.
क्या होता है जीआई टैग
जीआई टैग (GI Tag) एक ऐसा प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है. जीआई टैग, उत्पाद की विशेषता बताता है. इसका मतलब यह हुआ कि विशेष उत्पाद किस जगह पैदा होता है या इसे कहां बनाया जाता है. यह उन उत्पादों को ही दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र की विशेषता रखते हों. साल 2004 में सबसे पहले पश्चिम बंगाल की दार्जलिंग चाय को जीआई टैग दिया गया था. बिहार की बात करें तो हाल ही में राज्य के प्रसिद्ध मिर्चा चावल को जीआई टैग दिया गया था, जो अपनी सुगंध और स्वाद के लिए जाना जाता है. भागलपुर के जर्दालू आम और कतरनी धान, नवादा का मगही पान और मुजफ्फरपुर की शाही लीची को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है.