भगवान शिव की नगरी कैलाश आज तिब्बत में स्थित है और यह हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों के लिए एक पवित्र स्थल है। भले ही यह इलाका चीन के अधीन है, लेकिन इसका भारत के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम और दक्षिण में मानसरोवर व राक्षसताल झील हैं। माना जाता है कि कैलाश पर्वत श्रृंखला का निर्माण हिमालय पर्वत श्रृंखला के शुरुआती चरणों के दौरान हुआ था। कैलाश पर्वतमाला के निर्माण के कारण हुए भूगर्भीय बदलाव से चार नदियां भी जन्मीं, जो अलग-अलग दिशाओं में बहती हैं-ये हैं सिंधु, करनाली, यारलुंग त्सांगपो यानी ब्रह्मपुत्र और सतलुज। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। जानते हैं भगवान शिव की नगरी कैलाश की कहानी। शिव पुराण, स्कंद पुराण और विष्णु पुराण जैसे हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास क्षेत्र है, जहां वह माता पार्वती के साथ विराजते हैं। 1951 में तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद चीन कैलाश पर्वत की तीर्थयात्रा की अनुमति देता रहा है। 1954 के चीन-भारतीय समझौते ने तीर्थयात्रा की अनुमति दी। हालांकि, 1959 के तिब्बती विद्रोह और 1962 के चीन-भारत युद्ध के कारण कई बार सीमाएं और यात्रा बंद कर दी गईं। कोरोना महामारी के दौर में भी ये यात्रा बंद रही। अब भारत-चीन के बीच हुए एक अहम समझौते में इस यात्रा पर फिर से सहमति बनी है।

जम्मू-कश्मीर समझौते से यह इलाका चीन को मिला
पूर्व राजदूत पी स्टोबदान ने अपने एक आर्टिकल में लिखा है कि कैलाश मानसरोवर और इसके आसपास का इलाका 1960 के दशक तक भारत के अधिकार क्षेत्र में आता था। लद्दाख के राजा त्सावांग नामग्याल का शासन क्षेत्र कैलाश मानसरोवर के मेन्सर नाम की जगह तक था। ये पूरा इलाका भारत, चीन से लेकर नेपाल की सीमा तक फैला था। 1911 और 1921 की जनगणना में कैलाश मानसरोवर वाले इलाके के मेन्सर गांव में 44 घर होने की बात सरकारी रिकॉर्ड में है। 1958 के जम्मू-कश्मीर समझौते के मुताबिक मेन्सर चीन के कब्जे में चला गया। यह इलाका चीन कब्जे वाले लद्दाख तहसील के 110 गांवों में शामिल था। 1959 में पहली बार चीन ने अपने नक्शे में सिक्किम, भूटान से लगते कैलाश मानसरोवर के बड़े हिस्से को अपने अधिकार क्षेत्र में दिखाया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसद के बाहर और भीतर इसका जोरदार विरोध दर्ज कराया। पूर्व राजदूत स्टोबदान ने लिखा है कि नेहरू ने ये जमीन भले ही चीन को सौंपी न हो, लेकिन वो इसे बचा नहीं पाए।
कैलाश मानसरोवर तीर्थ को अष्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलाश के बर्फ से ढंके 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है। इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जैन धर्म के भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। कहा जाता है कि इस पर्वत का निर्माण 30 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। कैलाश मानसरोवर यात्रा एक पवित्र तीर्थयात्रा है, जिसे मोक्ष का प्रवेश द्वार माना जाता है। कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम और दक्षिण में मानसरोवर व राक्षसताल झील हैं। माना जाता है कि कैलाश पर्वत श्रृंखला का निर्माण हिमालय पर्वत श्रृंखला के शुरुआती चरणों के दौरान हुआ था। कैलाश पर्वतमाला के निर्माण के कारण हुए भूगर्भीय परिवर्तन से चार नदियां भी जन्मीं, जो अलग-अलग दिशाओं में बहती हैं-ये हैं सिंधु, करनाली, यारलुंग त्सांगपो यानी ब्रह्मपुत्र और सतलुज। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है. कैलाश मानसरोवर का क्षेत्र तिब्बत में पड़ता है, जिस पर ब्रिटिश अभियान 1903 में शुरू हुआ और 1904 तक चला। अंग्रेजों ने राजधानी ल्हासा पर आक्रमण किया। अंग्रेजों को इस पर नियंत्रण पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। तिब्बत को 24 अक्टूबर, 1951 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने अपने अधीन कर लिया था। कैलाश पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटियों में से एक कैलाश पर्वत है, जो ट्रांस-हिमालय का एक हिस्सा है, जो चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है। यह पर्वत चीन, भारत और नेपाल के पश्चिमी ट्राई जंक्शन पर स्थित है। यात्रा का आयोजन विदेश मंत्रालय करता है।हिंदुओं के लिए यह भगवान शिव का पवित्र निवास है। बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को कांग रिनपोछे यानी बर्फ के अनमोल रत्न के रूप में नवाजा जाता है। जिसे ज्ञान और निर्वाण की प्राप्ति से जुड़ा एक पवित्र स्थल माना जाता है। बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को ‘मेरु पर्वत’ के नाम से जाना जाता है और इसे डेमचोक का निवास स्थान माना जाता है। जैनियों के लिए कैलाश पर्वत को अष्टपद के रूप में जाना जाता है। यह उनके पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ से जुड़ा हुआ है।
ब्रह्मांड का केंद्र
तिब्बती बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को एक्सिस मुंडी या ब्रह्मांड के केंद्र के रूप में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इसे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच पुल भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह वह बिंदु है जहां आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होती है, जो इसे अपार शक्ति और महत्व का स्थान बनाती है। लेखक ओसी हांडा की किताब ‘हिस्ट्री ऑफ उत्तरांचल’ के अनुसार, मुगल बादशाहों के दौर में उत्तराखंड के कुमाऊं में चांद वंश के राजा बाज बहादुर का शासन (1638-1678) था। बाज बहादुर के मुगल बादशाहों शाहजहां और औरंगजेब से काफी अच्छे संबंध थे। उस वक्त पहाड़ों पर हूणों का आतंक था, जिसे खत्म करने के लिए बाज बहादुर ने तिब्बत पर हमला किया था। मनमोहन शर्मा की किताब ‘द ट्रेजेड़ी ऑफ तिब्बत’ में कहा गया है कि बाज बहादुर ने तिब्बत के इस गढ़ पर कब्जा किया था। 1961 की आधिकारिक रिपोर्ट में कैलाश के पास के क्षेत्रों पर भारत के ऐतिहासिक, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारों का पूरा विवरण दिया गया था। चीन ने तब इसका विरोध नहीं किया था। 1947 में जम्मू-कश्मीर रियासत से किए गए समझौते में मेन्सर इलाके को चीन को दिए जाने का जिक्र नहीं है। मेन्सर इलाके पर दावे को लेकर कोई कानूनी हल नहीं हुआ है।