ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि अपनी पहचान बनाए रखने के लिए तिलक, चोटी, कंठी, जनेऊ और धोती जैसे धर्मचिह्न धारण करना चाहिए।

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि अपनी पहचान बनाए रखने के लिए तिलक, चोटी, कंठी, जनेऊ और धोती जैसे धर्मचिह्न धारण करना आवश्यक है। इसी तरह अपनी दिनचर्या में सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना, संध्या पूजन करना और दिन में समय से पवित्र भोजन कर रात्रि में जल्दी सोना ही युक्ताहार विहार कहलाता है। वह बृहस्पतिवार को सेक्टर-12 में आयोजित परमधर्मसंसद में हिंदू पहचान, दिनचर्या, संस्कार विषय को संबोधित कर रहे थे। परमधर्मादेश जारी करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि हिंदुओं को अपने कम से कम 16 संस्कारों में से यथासंभव को अपनाना उचित होगा। पहली पहचान हमारी वेशभूषा व अलंकारों से होती है। कोई हमें देखे तो उसे पक्का हो जाए कि हम हिंदू हैं। बाद में हमें अपने आचरण और व्यवहार को भी वैसा ही रखना चाहिए। विचारों के स्तर पर हमारी पहचान वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवंतु सुखिन:, अहिंसा परमो धर्म: है जिसे हमें बनाए रखना है। शंकराचार्य ने कहा कि व्यक्ति, वस्तु या विचारों की विशिष्टता ही हमारी पहचान है। एक व्यक्ति के रूप में हमारा नाम, हमारा रूप, हमारी रुचियां, हमारे आचरण ही हमारी पहचान हैं। इसके विपरीत पहचान का संकट हमें वैयक्तिक, सामाजिक और सांस्कृतिक-धार्मिक दबाव या संघर्ष में डाल सकता है।