· एक तीर में साधे कई निशाने
नागपुर। राजनीति के चाणक्य कहे जानेवाले राष्ट्र्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के राकांपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद से कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। इस्तीफे के पीछे की वजह क्या है, अगला अध्यक्ष कौन होगा, उनकी बेटी सुप्रीया सुले या भतीजा अजित पवार जैसे कई सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे हैं। इधर राजनीतिक गलियारे में चर्चा यह भी है कि यह शरद पवार का माइंड गेम ही है। कहा जा रहा है कि राकांपा अध्यक्ष कोई भी बने फायदा शरद पवार का ही होगा। मुंबई के वाई.बी चव्हाण मेमोरियल सेंटर में मराठी किताब ‘लोक मझे संगति’ के विमोचन कार्यक्रम में किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि शरद पवार अपने जीवन का इतना बड़ा फैसला ले लेंगे। उन्होंने राकांपा का अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान कर दिया. शरद पवार कहा कि ‘मई 1960 से लेकर अब तक के लंबे सार्वजनिक जीवन के बाद एक कदम पीछे हटना जरूरी है’. पवार के इस ऐलान के बाद सभी राकांपा नेताओं ने उनसे यह फैसला वापस लेने की अपील की क्योंकि वे इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन न तो अजित पवार ने कुछ कहा और न ही सुप्रिया सुले ने. महाराष्ट्र राकांपा प्रमुख जयंत पाटिल और विधायक जितेंद्र अव्हाड ने नम आंखों से उनसे ऐसा न करने को कहा, ये भी कहा कि यदि आप पार्टी के ढांचे में फेरबदल करना चाहते हैं हम आपके निर्णय का पालन करेंगे’. फिलहाल पवार ने अपना उत्तराधिकारी चुनने के लिए एक समिति का गठन करने की सिफारिश की है. उनका सुझाव है कि एक कमेटी बनाई जाए जिसमें अजित पवार, सुप्रिया सुले, प्रफुल्ल पटेल समेत 12 नेता हों. जो पार्टी का नया अध्यक्ष चुनें. अजित पवार को छोड़कर NCP के सभी नेताओं ने ये दावा किया कि जब तक शरद पवार ने अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान नहीं किया था तब तक उन्हें भी इसकी जानकारी नहीं थी. सिर्फ अजित पवार ने ये कहा कि पवार साहब एक मई को ही ये निर्णय ले चुके थे, लेकिन उन्हें रोक लिया गया था, क्योंकि उसी दिन मुंबई में महाविकास अघाड़ी की रैली थी. उनके इस फैसले से रैली पर असर पड़ सकता था.
सही टाइमिंग और सुनियोजित निर्णय
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो शरद पवार ने सुनियोजित तरीके से सही टाइमिंग के साथ एक तरह का माइंड गेम खेला है क्योंकि लोकसभा चुनाव को अभी एक साल का समय शेष बचा है। इस चुनाव में मोदी सरकार को हराने के लिए देश भर का विपक्ष लामबंद होने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में शरद पवार के इस्तीफे से विपक्षी एकता को झटका लगेगा। यानी यदि लोकसभा चुनाव के लिए तीसरा मोर्चा बनता भी है तो कोई भी शरद पवार को दोष देने की स्थिति में नहीं रहेगा। शरद पवार शायद इसी के साथ सुप्रीया सुले को राष्ट्रीय राजनीति में उतार सकते हैं और अजित पवार को महाराष्ट्र की कमान सौंप सकते हैं। इससे उनका परिवार भी टूटने से बच जाएगा । कहा यह भी जा रहा है कि शरद पवार महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठबंधन करने को इच्छुक थे लेकिन उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि इसके आड़े आ रही थी। अब यदि महाराष्ट्र में राकांपा और भाजपा का गठबंधन होता है तो उनके दामन पर कोई दाग भी नहीं लगेगा। क्योंकि कहा यही जाएगा कि यह नए अध्यक्ष का फैसला है। इधर राकांपा में कई बार दरार की संभावनाएं भी बन रही थी लेकिन पवार के पॉवर के कारण ऐसा मुमकिन नहीं हुआ था। अब यदि कोई पार्टी विरोधी कार्य करता है तो उस पर सख्त कार्रवाई की जा सकेगी। इससे राकांपा और मजबूत स्थिति में आ जाएगी। ज्ञात हो कि सुप्रीया सुले ने हाल ही में कहा था कि महाराष्ट्र और दिल्ली की राजनीति में दो भूकंप आनेवाले हैं। पवार के इस्तीफे को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। महाराष्ट्र की राजनीति में तो भूकंप आ गया अब दिल्ली की राजनीति में कौनसा भूकंप आएगा, इस ओर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। बता दें कि महाराष्ट्र की सरकार को लेकर कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आनेवाला है। इस फैसले से यदि एकनाथ शिंदे की सरकार को खतरा हुआ तो अजित पवार भाजपा के संकटमोचन के रूप में सामने आ सकते हैं। इसी के साथ यदि राकांपा भाजपा का समर्थन करती है तो घोटालों के आरोप से घिरे अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, सुनील तटकरे आदि राकांपा नेताओं को ईडी और सीबीआई की जांच से राहत मिल सकती है।