विंदेश्वर पाठक अपने पीछे सुलभ के कार्यों की एक बड़ी श्रंखला और विरासत छोड़कर गए हैं.
अक्सर आपने रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन, सड़क किनारे, बाजारों में पब्लिक टॉयलेट्स का इस्तेमाल तो किया ही होगा लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि ये किसने बनाए? आपकी जरूरत का ध्यान किसे आया? तो जान लीजिए कि भारत में एक समय ऐसा भी था जब दिनचर्या की सबसे बड़ी जरूरत यानि शौच या पेशाब जाने को आपदा समझा जाता था, खासतौर पर महिलाओं के लिए और कई बार पुरुषों के लिए भी यह किसी मुसीबत से कम नहीं होती थी.
इसकी सबसे बड़ी वजह थी भारत के शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक स्थानों और ग्रामीण क्षेत्रों में घरों के अंदर शौचालय न होना लेकिन तभी एक व्यक्ति सामने आया जिसने न केवल देशभर में सार्वजनिक शौचालय बनाने की ठानी बल्कि इसे मिशन बना लिया और उन्हें टॉयलेट मैन ऑफ इंडिया के नाम से जाना गया. वहीं इनके टॉयलेट्स को सुलभ शौचालय नाम दिया गया.
देश में बनाए गए इन लाखों सुलभ शौचालयों का इस्तेमाल आज देश के करीब दो करोड़ लोग रोजाना करते हैं. इन्हें बनाने वाले व्यक्ति का आज यानि स्वतंत्रता दिवस के दिन निधन हुआ है. ये व्यक्ति हैं सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के फाउंडर विंदेश्वर पाठक. इनका निधन आज एम्स दिल्ली में कार्डिएक अरेस्ट के चलते हुआ है.
15 अगस्त को सुबह ही पाठक की उनके केंद्रीय कार्यालय में झंडारोहण के समय तबियत खराब हुई थी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. हालांकि विंदेश्वर पाठक अपने पीछे सुलभ के कार्यों की एक बड़ी श्रंखला और विरासत छोड़कर गए हैं.
पाठक का निधन 80 साल की उम्र में हो गया.
देशभर में सुलभ शौचालय के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सुलभ के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक का निधन 80 साल की उम्र में हो गया.
सुलभ इंटरनेशनल के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक का 80 साल की उम्र में निधन हो गया. एक करीबी सहयोगी ने बताया कि कार्डियक अरेस्ट के कारण उनकी मौत हो गई. मंगलवार को पाठक ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सुबह राष्ट्रीय ध्वज फहराया और उसके तुरंत बाद गिर गए. बिंदेश्वर पाठक को तुरंत दिल्ली एम्स में लेकर जाया गया. अस्पताल की ओर से बताया गया कि उनकी मौत दोपहर 1.42 बजे हो गई.
वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में उनका जन्म हुआ था. उन्होंने 1964 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी. उन्होंने 1980 में अपनी मास्टर डिग्री और 1985 में पटना विश्वविद्यालय से पीएचडी की भी पढ़ाई पूरी की थी. उन्होंने देश की स्वच्छता समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस की स्थापना की थी.
पद्म भूषण से सम्मानित थे पाठक
पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की थी. यह एक समाजिक सेवा संगठन है. यह संस्था शिक्षा के माध्यम से मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता और अपशिष्ट का मैंनेज करता है. इसकी भूमिका देशभर में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण में मुख्य रही है. संगठन के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक को 1991 में उनके काम और पोर फ्लश टॉयलेट टेक्नोलॉजी पेश करके पर्यावरण को रोकने के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
इसके अलावा डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें गुड कार्पोरेट सिटिजन अवार्ड, एनर्जी ग्लोब अवार्ड, डब्ल्यूएचओ पब्लिक हेल्थ कैपेन अवार्ड दिया गया है. साथ ही उन्हें गांधी शांति पुरस्कार भी मिल चुका है. सुलभ के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक की सालाना 4 से 5 मिलियन डॉलर थी. वहीं उनकी कुल नेटवर्थ 306 करोड़ रुपये है.
सोशल एक्टिविस्ट पाठक ने देश को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने में कई अहम भूमिका निभाई है. इन्हें कई सारे अवार्ड से भी नवाजा गया है. सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस की वेबसाइट के मुताबिक, बिंदेश्वर एक घटना से प्रेरित होकर महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने की शपथ ली, जो ‘अछूत’ कहे जाने वाले लोगों के अधिकारों के लिए लड़ना और मानवीय गरिमा और समानता का समर्थन करना है.