सरकार अब नीतीश और चंद्रबाबू के समर्थन पर

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Modi 3.0 : मोदी सरकार 3.0 की डोर अब नीतीश और चंद्रबाबू के समर्थन पर

नई सरकार के गठन में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की अहम भूमिका रहेगी.

मोदी सरकार 3.0 सरकार को बहुमत के लिए नीतीश कुमार और एन चंद्रबाबू नायडू के समर्थन पर निर्भरता बढ़ गई है.

राजनीति में जो मुट्ठी कभी खाक की होती है वो समय बदलने के साथ कभी लाख की भी हो जाती है. अभी कुछ महीने पहले तक इन दो नेताओं की किस्मत इनसे रुठी हुई दिख रही थी. एक सीएम की कुर्सी पर बैठकर भी विरोधियों के निशाने पर थे तो दूसरे सीएम की कुर्सी दोबारा पाने के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे थे. लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घूमा है कि राजनीति के ये दो पुराने धुरंधर अचानक से किंगमेकर की भूमिका में आ गए. मोदी सरकार 3.0 की दो डोर अब इनके पास है जिसका इस्तेमाल ये अपनी राजनीतिक फायदे के लिए कर सकते हैं. हम बात कर रहे हैं बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की.

इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद इन दोनों की ताकत काफी बढ़ गई है. इनके समर्थन के बिना अगली सरकार का गठन होना आसान नहीं. इसलिए तीसरी बार मोदी सरकार में नीतीश और नायडू की बड़ी भूमिका रहने वाली है. इनके समर्थन के बिना मोदी सरकार के लिए बहुमत का आंकड़ा जुटाना बेहद मुश्किल है.एनडीए के कुल आंकड़े से अगर इन दो दलों को निकाल दिया जाए तो एनडीए के पास सिर्फ 262 सांसद ही बचेंगे जो बहुमत से 10 कम होगा. आखिर हम इन दो नेताओं की ही क्यों बात कर रहे हैं? इसको जानने के लिए पीछे का इतिहास खंगालना जरूरी है.
नीतीश कुमार एनडीए के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं. 1996 से लेकर 2013 तक वो एनडीए के साथ लगातार बने रहे. लेकिन जब बीजेपी ने 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश 17 साल बाद एनडीए से बाहर हो गए.

इसके बाद वो बिहार में लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल हो गए. 2015 का विधानसभा चुनाव वो महागठबंधन के साथ लड़े और बिना बिहार के फिर से सीएम बने, लेकिन 2017 में एक बार फिर नीतीश एनडीए के साथ आ गए और 2019 का लोकसभा और 2020 का विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ ही लड़े. मगर नीतीश का मन एक बार फिर डोला और 2022 में वो फिर से एनडीए से नाता तोड़ महागठबंधन के साथ आ गए. 2024 आते-आते नीतीश कुमार ने एक बार फिर से यू-टर्न लिया और लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले एनडीए के साथ आ गए. 2013 से लेकर 2024 के बीच नीतीश दो-दो बार दोनों गठबंधनों के साथ पाला बदल चुके हैं. ऐसे में उनके पलटी मारने का खतरा इस बार भी एनडीए सरकार पर बना रहेगा जो सरकार की स्थिरता पर भी असर डालेगा. हालांकि 12 सांसद वाली नीतीश की पार्टी अकेले सरकार के बहुमत को नहीं घटा पाएगी. सरकार पर दबाव बनाने के लिए उन्हें 16 सांसद वाले तेलगू देशम पार्टी के साथ की भी जरूरत पड़ेगी. यानी नीतीश को टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू को भी अपने साथ लाना होगा जो उनकी ही तरह राजनीति के बड़े माहिर खिलाड़ी हैं.


एन चंद्रबाबू नायडू का रिश्ता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कभी मीठा तो कभी तीखा रहा है. 2014 में नायडू एनडीए के साथ चुनाव लड़े और आंध्र प्रदेश में एनडीए गठबंधन की सरकार भी बनी. लेकिन 2018 आते आते नायडू और बीजेपी के बीच दूरियां ऐसी बढ़ी कि उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया. एनडीए छोड़ने के बाद नायडू ने पीएम मोदी के खिलाफ खूब बयानबाजी की और उन्हें चुनाव में हराने के बड़े बड़े दावे किए. 2019 के लोकसभा और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में नायडू अकेले चुनाव लड़े और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. लेकिन जब नायडू के सितारे गर्दिश में गए तो वो आंध्र प्रदेश की राजनीति में अलग थलग पड़ गए. इसके बाद नायडू एनडीए में फिर से एंट्री के लिए लगातार कोशिश करते रहे. कई महीनों के इंतजार के बाद बीजेपी ने उन्हें एनडीए में फिर से शामिल कर लिया और 2024 में उन्होंने आंध्र प्रदेश विधानसभा में ही भारी बहुमत हासिल नहीं किया बल्कि लोकसभा चुनाव में भी टीडीपी के 16 प्रत्याशी चुनाव जीत गए. अब बहुमत के नंबर के खेल में ये 16 सांसद बड़ा रोल निभाएंगे जिससे नायडू की ताकत भी काफी बढ़ गई है. चंद्रबाबू नायडू ने अटल विहारी वाजपेयी सरकार के दौरान भी काफी राजनीतिक सौदेबाजी की थी और उन्होंने प्रधानमंत्री वाजपेयी के नाक में दम कर दिया था. जाहिर है नीतीश और नायडू के अतीत के व्यवहार मोदी 3.0 सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना रहेगा. एनडीए में बीजेपी के बाद टीडीपी और जदयू के पास सबसे ज्यादा सांसद हैं. ऐसे में नीतीश और नायडू दोनों को संतुष्ट रखना पीएम मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.

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