यवतमाल जिले में विशालकाय डायनासोर के जीवाश्म पाए गए।
नागपुर। विदर्भ (महाराष्ट्र) के यवतमाल जिले की वणी तहसील के बोर्डा के पास विरकुंड गांव के समीप 6 करोड़ साल पहले लेट क्रेटेशियस काल के विशालकाय डायनासोर के जीवाश्म पाए गए। यह खोज पर्यावरण और भूविज्ञान शोधकर्ता प्रो. सुरेश चोपाने ने की है। चोपाने शौकिया तौर पर पिछले 20 साल से यवतमाल जिले में सर्वे कर रहे हैं। इसके पूर्व उन्होंने पंढारकवाड़ा, रालेगांव, झरी तालुक में 6 करोड़ साल पुराने शंख के जीवाश्म और 150 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म खोजे हैं। वह यवतमाल जिले में 25 हजार साल पुराने पाषाण युग के औजार भी खोज चुके हैं। यह सभी साक्ष्य उनके पास निजी तौर पर उपलब्ध है। आम नागरिकों के लिए उनके घर पर शैक्षिक संग्रहालय और शोधकर्ताओं के लिए प्रदर्शित हैं।
यवतमाल के वणी तहसील के बोर्डा-विरकुंड क्षेत्र में 150 करोड़ वर्ष के नियोप्रोटेरोज़ोइक काल के पनगंगा समूह का चूना पत्थर है और उस दौरान यहां समुद्र था। जुरासिक काल में यहां विशाल डायनासोर जानवर विकसित हुए। यहां बेसाल्ट के रूप में, एक अग्निजन्य चट्टान है जिसे अभी भी देखा जा सकता है।
प्रो. चोपाने बताते हैं कि 50 साल पहले विरकुंड गांव के पास डायनासोर का जीवाश्म बना हुआ कंकाल रहा होगा, लेकिन जंगल में खेती के दौरान यहां के लोग चूना पत्थर का इस्तेमाल घर बनाने के लिए करते थे, क्योंकि दूर से हड्डियां और चूना पत्थर एक जैसे दिखते हैं। गांव वाले भी डायनासोर की हडि्डयों को चूने का पत्थर समझकर घर बनाने के लिए करते थे। सुरेश चोपणे को जो जीवाश्म मिला है, वह डायनासोर की हड्डी है।
चोपणे का कहना है कि बहुत सारे जीवाश्म केे साक्ष्य नष्ट हो गए हैं। चंद्रपुर की तरह वणी, मारेगांव, पंढारकवड़ा, झरी, मुकुडबन क्षेत्र में जीवाश्म अधिक पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में आज भी डायनासोर के जीवाश्म जमीन या जंगली क्षेत्रों में पाए जा सकते है। इसके लिए व्यापक शोध की आवश्यकता है। प्रो. चोपने ने भूविज्ञान विभाग से यहां सर्वे और संशोधन करने की मांग की है।