Bihar Caste Census Report : जातिगत गणना सर्वे रिपोर्ट में कुछ तो गड़बड़ है, 12 साल में 60 प्रतिशत से भी अधिक की कमी कायस्थों की आबादी में

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पटना. बिहार सरकार ने जातिगत गणना सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक कर दिया है. नीतीश सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह ने इसकी जानकारी साझा करते हुए बताया कि प्रदेश में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत है और सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 प्रतिशत है. अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) 27 प्रतिशत है. आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की आबादी में अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत है. अलग-अलग जातियों के भी आंकड़े जारी किए गए हैं, लेकिन इनमें एक चौंकानेवाला आंकड़ा भी सामने आया है. दरअसल, एक विशेष जाति की आबादी जो 2011 की जनगणना से आधी से भी कम हो गई .

दरअसल, बिहार सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में बताया गया है कि ओबीसी समुदाय में यादव (जिससे डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव आते हैं) राज्य की आबादी का 14.27 प्रतिशत है. जाति सर्वेक्षण में यह भी जानकारी दी गई है कि कुशवाहा यानी कोयरी 4.27 प्रतिशत (जिससे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी आते हैं) और कुर्मी ( जिससे सीएम नीतीश कुमार आते हैं) 2.87 प्रतिशत है. वहीं, सवर्णों में ब्राह्मणों की 3.66 प्रतिशत, राजपूतों की आबादी 3.45 प्रतिशत, भूमिहारों की आबादी 2.86 प्रतिशत, और सबसे चौंकानेवाला आंकड़ा, कायस्थों की आबादी 0.60 प्रतिशत है. यहीं पर सवाल उठता है कि क्या जातीय जनगणना में कुछ गड़बड़ी हुई है?

यह सवाल इसलिए क्योंकि वर्षकायस्थ 1.5% , बिहार की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी. इसमें 82.69% आबादी हिंदू और 16.87% आबादी मुस्लिम समुदाय की थी. हिंदू आबादी में 17% सवर्ण, 51% ओबीसी, 15.7% अनुसूचित जाति और करीब 1 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है. यह कहा जाता है कि बिहार में 14.4% यादव समुदाय, कुशवाहा यानी कोइरी 6.4%, कुर्मी 4% हैं. सवर्णों में भूमिहार 4.7%, ब्राह्मण 5.7%, राजपूत 5.2% और कायस्थ 1.5% थी. जाहिर है कायस्थों की आबादी में इतना बड़ा अंतर महज 12 वर्ष में आ जाना बड़ा सवाल खड़ा करता है. अगर ऐसा ही है तो यह जाति विलु्प्ति के कगार पर मानी जा सकती है. अगर ऐसा नहीं है तो निश्चित तौर पर कहीं कोई गड़बड़ी है.

बहरहाल, हकीकत क्या है यह तो जनगणना के आंकड़े जारी करनेवाली एजेंसी ही बता सकती है, लेकिन कायस्थों की आबादी में 60 प्रतिशत से भी अधिक की कमी हैरान करनेवाला है. खास बात यह कि यह कमी महज 12 वर्ष में हुई है, ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है. सवाल यह कि या अगर ऐसा ही वाकई में है तो यह काफी चिंता की बात है और यह जाति विलुप्त होने की कगार पर है. अगर ऐसा नहीं है तो निश्चित तौर पर कहीं कुछ चूक या कोई गड़बड़ी हुई है तो इसकी जांच होनी चाहिए और इसे सुधारा जाना चाहिए.

यहां यह भी बता दें कि धर्म के आधार पर भी आंकड़े बताए गए हैं कि किस धर्म से संबंध रखनेवाले लोगों की कितनी आबादी है. बिहार सरकार के आंकड़ों में यह भी बताया गया है कि प्रदेश की कुल 13 करोड़ से अधिक आबादी में हिंदू 81.99 प्रतिशत, मुस्लिम 17.7 प्रतिशत, ईसाई 0.05 प्रतिशत, सिख 0.01 प्रतिशत, बौद्ध 0.08 प्रतिशत और अन्य धर्मों के 0.12 प्रतिशत शामिल हैं.

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